कोशिशें कर रहा हूँ लाखों हर रोज़ ख़ुद को बेहतर बनाने की, पर कम्बख्त आदतों ने ठान ली है रोज़ मुझे आजमाने की, ये ज़द्दोज़हद ना जाने कब तक चलेगी? कब मुझे अपनी मनचाही शख्सियत मिलेगी? कब होगा दीदार एकमेव रूह का कब "अहम् ब्रह्मास्मि" की ज्योत मुझमे सच्ची जलेगी? अभी तलक तो हर क्षण अंतर-द्वन्दों में ढलता है कभी धरा तो कभी गगन में मन ये सदा भरमता है और कभी तो धरती के भीतर गहरे अंधेरो में जा जाकर छुपकर अपनी अंधी वासनाओं में जीता मरता है फिर बाहर आकर आंसू बहाता अपने से ही पूछता है कौन है वो जो मुझे बार बार यहाँ धकेलता है? रोज़ नए उपदेश सुने, सुने नए व्याख्यानों को कई किताबें छान डाली, पर जूं न रेंगी कानो को कर्मयोग का रहस्य पढ़ा पर कर्म की व्याख्या पता नहीं भक्ति भजन सब सुन डाले पर ईश्वर से सच्चा प्रेम जगा नहीं योग तो बहुत लुभावन लगे पर करने का कुछ चाव नहीं ज्ञानी बना प्रवचन सुनाये पर अंतर का कोई ज्ञान नहीं मुझसे बेहतर तो अनपढ़ होना है जिसमे कोई द्वन्द नहीं सच्चा ज्ञानी वही जिसके कथनी और करनी में कोई भेद नहीं अबला असहायों के ऊपर नीच क्रोध दिखलाता है सबल के
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Sometimes in life we start something and forget it and when we find it expectantly someday or to say some years later it brings an unknown joy like when we find a sudden picture of childhood which even we've forgotten. Exactly this is my feeling now because I have myself forgotten this blog which was started around 12 years back in 2008. It felt so good to read about my views back then when I was a 20 year old kid with many dreams and many aspirations in life many of which I find have completely changed now. As I'm going through my likes and dislikes which I had written then, I cant stop me laughing as how the priorities and likes & dislikes have changed almost 180 degrees. Even the introduction I had written in 2008 showed the arrogance of youth - I'm what I am. This shows back then I had no clue about what challenges life will throw at me. Now as I write this I'm a family man with wife and a 3.5 year old daughter. Life has been a roller-coaster drive throug